डीईओ ऑफिस की सख्ती पर प्राइवेट स्कूलों के हुए तीखे तेवर, डीईओ बोले सब कुछ नियम से चल रहा है…

इटारसी। निजी रूप से स्कूल संचालित करने वाले स्कूल संचालक, भूमि माफिया, खनिज माफिया, शराब माफिया या मादक पदार्थों के व्यापारी नहीं हैं बल्कि वह तो स्कूल के माध्यम से देश के भविष्य बच्चों को शिक्षित करने में लगे हैं। फिर भी प्रशासनिक दवाब इन्हीं के ऊपर दिया जाता है,जिला शिक्षा विभाग उन्हे कार्यालय बुलाकर क्यों मुजरिम की तरह घंटो खड़े रखता है ,छोटे-छोटे मामलों में मान्यता समाप्त करने की धमकी देकर स्कूल संचालको पर मानसिक दवाब बनाया जाता है।

यह कहना है निजी स्कूल संचालकों का जो शुक्रवार को नोटिस मैने पर अपनी बात रखने डीईओ कार्यालय पहुंचे थे। जिला शिक्षा अधिकारी ने जिले के 43 स्कूलों को नोटिस देकर उन्हें अपने दस्तावेजों के साथ 25 और 26 जुलाई को अपने कार्यालय में बुलाया था। स्कूल संचालक पहुंचे भी लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी वहां से नदारत थे। गिरते पानी में जिले के कोने-कोने से नदी नालों को पार करते हुए स्कूल संचालक जब जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में पहुंचे तो वहां उनके साथ ऐसा व्यवहार किया गया जैसे वह किसी बड़े अपराध के आरोपी हों।

कुर्सी पर नहीं मिले डीईओ

स्कूल संचालको ने बताया कि उन्हें सुबह 11 बजे का समय दिया गया था फिर भी स्कूल संचालक सुबह 10:30 बजे ही अपनी फाइल लेकर गिरते पानी में डीईओ कार्यालय पहुंचे, लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी यहां पर नहीं मिले। कार्यालय में बैठने की व्यवस्था भी नहीं थी।।सभी लोग जहां-तहां घंटो खड़े रहे, इनमें बहुत सी महिलाएं भी थीं। बनखेड़ी,सोहागपुर, पिपरिया पचमढ़ी, इटारसी, सिवनी मालवा, डोलरिया, शोभापुर, सेमरी, माखननगर आदि क्षेत्रों के स्कूल संचालक भारी बारिश में जिला शिक्षा कार्यालय में मौजूद थे, लेकिन वहां पर उनकी व्यथा सुनने वाला कोई नहीं था। उन्होंने बताया कि इसके पहले भी वह अपने स्कूल की संपूर्ण जानकारी,आनलाइन और फाइलों के रूप में यहां जमा कर चुके हैं लेकिन कुछ ना कुछ कमी निकालकर उन्हें अपने दस्तावेज लेकर बुलाया गया है। 

शिक्षा विभाग कर रहा परेशान

स्कूल संचालको ने कहा कि उन्होंने शिक्षा का क्षेत्र अपनाकर क्या गुनाह किया है। शिक्षा विभाग के अधिकारी उन्हें इस प्रकार से क्यों परेशान कर रहे हैं, इधर जिले भर के जनप्रतिनिधि भी मौन है। स्कूल संचालक शिक्षित बेरोजगारों को शिक्षक के रूप में रोजगार देने के साथ ही बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रहे हैं, उन्हें शिक्षा विभाग के अधिकारी परेशान कर रहे हैं। स्कूल संचालकों ने बताया कि 26 जुलाई शुक्रवार को बड़ी संख्या में गिरते पानी में जिला शिक्षा कार्यालय पहुंचे, स्कूल संचालकों ने बताया कि सुबह 10:30 बजे यहां पर अपनी फाइल लेकर पहुंच गए लेकिन उन्हें देखने वाला कोई नहीं था। वहां बैठे बाबू कहते हैं कि सर के आने के बाद फाइल देखी जाएगी, कार्यालय में पदस्थ स्टाफ द्वारा भी द्वारा स्कूल संचालकों से ऐसा दुर्व्यवहार किया जा रहा है जैसे कि वह कोई माफिया हो।

खुलकर बोले संगठन के पदाधिकारी

सोपास के जिला अध्यक्ष आलोक राजपूत का कहना है कि शिक्षा विभाग द्वारा नए कानून का हवाला देकर स्कूल संचालक को बिना वजह परेशान किया जा रहा है। सोपास के प्रदेश पदाधिकारी आलोक गिरोटिया, जिला कार्यकारिणी सदस्य मोहम्मद जाफर सिद्दीकी का कहना है कि शिक्षा विभाग द्वारा सरकार के कानून की गलत व्याख्या कर स्कूल संचालकों को बेवजह परेशान किया जा रहा है ।
सोपास के इटारसी ब्लॉक अध्यक्ष निलेश जैन का कहना है कि शिक्षा विभाग के माध्यम से प्रशासन का सारा दबाव स्कूल संचालकों पर ही क्यों डाला जा रहा है, उनका कहना है कि सरकार आरटीई की तहत प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की फीस दो- तीन साल तक नहीं देती है, जो अन्य बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं, उनमें से कई बच्चों के बालक साल भर फीस नहीं देते हैं , जब उनसे फीस मांगो तो वह जिला शिक्षा अधिकारी के पास पहुंच जाते हैं तो शिक्षा विभाग और प्रशासन स्कूल संचालक से परीक्षा लेने और परीक्षा के बाद टीसी देने के लिए दवाब बनाते हैं। ऐसी स्थिति में निजी स्कूल संचालकों का स्कूल चलाना मुश्किल हो गया है, अनेक स्कूल संचालक भारी आर्थिक तंगी में है। उनका कहना है कि प्रशासन और शिक्षा विभाग को केवल स्कूल संचालकों द्वारा ली गई फीस का हिसाब ही दिखता है, लेकिन उनके द्वारा जो खर्च किए जाते हैं,जो पालक उनकी फीस रोक लेते हैं, लाखों रुपए उनकी फीस डूब जाती है, वह नहीं दिखाई देता। कुछ स्कूल संचालको ने यह भी सवाल उठाया कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक ,प्रोफेसर, प्रिंसिपल्स सरकार से हजारों रुपए वेतन लेते हैं लेकिन स्कूलों से नदारत रहते हैं,सरकारी स्कूलों में ग्रामीण क्षेत्र की स्थिति यह है कि वहां शिक्षक और प्राचार्य कभी समय पर नहीं आते, कई जगह तो समय पर स्कूल भी नहीं खुलते, प्यून ही सारा काम निपटाता है। पिछले दिनों संयुक्त संचालक शिक्षा, सहायक आयुक्त आदिवासी द्वारा जब शासकीय स्कूलों का निरीक्षण किया गया तो अनेक जगह ऐसी स्थितियां पाई गई कि वहां पर या तो स्कूल ही नहीं खुला या स्कूल में 10 में से 8 शिक्षक गायब मिले,कहीं प्रिंसिपल ही नहीं मिले तो आखिर सरकार जिला शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन ऐसे शिक्षकों और प्रिंसिपलों पर कार्यवाही क्यों नहीं करता, सरकार का दबाव निजी स्कूलों पर ही क्यों? जबकि निजी स्कूल बच्चों को अच्छी शिक्षा देने में बेहतर कार्य कर रहे हैं, यह उनके रिजल्ट, परीक्षा परिणाम बताते हैं ।जबकि सरकारी स्कूलों में हजारों रुपए वेतन पाने वाले शिक्षक स्कूल से अधिकांश समय गायब रहते हैं ,उनका कहना है कि हम यह नहीं कह रहे हैं कि सारे सरकारी स्कूल के शिक्षक पढ़ाई नहीं करवाते, लेकिन अधिकांश सरकारी स्कूलों की स्थिति यही है ,वही अनेक सरकारी स्कूलों में सुविधा नहीं है,बारिश में क्लास में पानी टपकता है ,तो गर्मी में बच्चों के लिए पंखों की व्यवस्था भी नहीं है। जबकि निजी स्कूलों में हर प्रकार की सुविधा बच्चों को मिल जाती हैं और रिजल्ट भी उनके बेहतर होते हैं ,निजी स्कूल संचालकों कहना यह भी है कि वह सरकार की हर योजनाओं को में सहयोग करते हैं और सरकारी कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं ,सरकार की मंशा के अनुरूप कार्य करते हैं फिर उनके साथ इस प्रकार का व्यवहार क्यों?  जिला शिक्षा अधिकारी और जिला प्रशासन को भी स्कूल संचालको के प्रति मानवीय संवेदनाएं रखते हुए व्यवहार करना चाहिए।

इनका कहना है

जिले के 43 प्राइवेट स्कूलों को नोटिस दिए गए है और उनसे उनके रिकॉर्ड बुलवाए जा रहे हैं। उन्हें समय इसलिए दिया जा रहा है कि वे भी अपनी बात रख सकें। किसी तरह की कोई दबाव डालने वाली गतिविधि नहीं हो रही है। हम शासन के निर्देश के हिसाब से ही काम कर रहे हैं। स्कूल संचालकों को ऐसा लग रहा है कि परेशान किया जा रहा है जबकि सारी प्रक्रिया नियमानुसार ही की जा रही है। सभी रिकॉर्ड आने के बाद उन्हें समिति के समक्ष रखा जाएगा। समिति ही उसमें कार्रवाई के निर्णय लेगी।

एसपीएस बिसेन, डीईओ नर्मदापुरम