अंतर्राष्ट्रीय शुष्क खेती संस्थान की कृषि वैज्ञानिक एमजीएम कॉलेज पहुंची, जैव तकनीक से रोग प्रतिरोधक फसलों के उत्पादन के बारे में दी जानकारी…

इटारसी। शासकीय महात्मा गांधी स्मृति स्नातकोत्तर महाविद्यालय, इटारसी में दस दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन हो गया है। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम बीज प्रमाणीकरण, जैविक खेती एवं बागवानी की विधियों पर आधारित था। कार्यक्रम के अन्तर्गत समापन दिवस पर अर्न्तराष्ट्रीय शुष्क खेती संस्थान की कृषि वैज्ञानिक डॉ. रीना मेहरा ने कहा कि इस संस्थान के पूरे विश्व में 50 केन्द्र है। उन्होंने विभिन्न प्रकार दलहन फसलों के उत्पादन जैसे- जी, मसूर, गेहूँ, तुअर काबुली चना की खेती के बारे में विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि जैव तकनीक से हम नई किस्मों को विकसित कर प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि काँटे रहित नागफनी को दुधारू पशुओं को चारे के रूप में दे सकते है जिससे दूध का उत्पादन बढ़ जाता है। डॉ रीना मेहरा ने बताया कि जैव तकनीकी की कृषि विज्ञान में बड़ी भूमिका है। आइकारडा भारत में यह एक मात्र केन्द्र मध्यप्रदेश व सिहोर जिले के अमलाहा में स्थित है। लक्ष्मीबाई कृषि विश्वविद्यालय के डॉ. पवन कुमार ने रिमोट सेंसिंग की प्रायोगिक विधियों को विस्तार से बताया और दिखाया कि किस प्रकार से रिमोट सेंसिंग विधि के द्वारा गेहूँ, मिर्च की पैदावार, नदी पहाड़ की स्थिति एवं फसल का विवरण हम गूगल पर प्राप्त कर सकते हैं। कार्यक्रम में दीप ज्योति किसान प्रोड्यूसर कृषि वैज्ञानिक दीपक राव ने गौ संवर्धन का कृषि क्षेत्र में महत्त्व समझाया। उन्होंने कहा कि गोबर, गोमुत्र, महुआ के फूल, मट्ठा, नीम, आँवला, धतुरा हरी मिर्च आदि का प्रयोग जैविक खेती में जैव उर्वरक के रूप में कर सकते है। अन्य वक्ता मुकातीलाला ने केंचुआ खाद के बनाने की विधि बताई और महाविद्यालय में एक इकाई की स्थापना भी की। प्राचार्य डॉ. राकेश मेहता एवं विषय विशेषज्ञों ने तकनीकी के महत्व एवं Recombinant DNA Technology के बारे में छात्राओं को बताया।