राजस्व विभाग के कर्मचारियों से सांठगांठ कर रिकॉर्ड में दर्ज दूसरे की जमीन खुद के नाम चढ़वाई, कोर्ट ने जांच के बाद फर्जी जमीन मालिक और परिजनों पर दिया एफआईआर करने का आदेश..

इटारसी।  गोंची तरोंदा में दूसरे की बेशकीमती जमीन षड्यंत्र करके अपने और परिवार के नाम कराने एवं इस जमीन के अधिग्रहण पर रेलवे से लाखों रुपये का मुआवजा लेकर रेलवे को चूना लगाने वाले फर्जी जमीन मालिक और उसके परिजनों पर कानून का शिकंजा आखिर कस ही गया है। दूसरे की जमीन पर रेलवे का मुआवजा डकारने के इस अनूठे मामले में एसडीएम न्यायालय ने एफआईआर कराने के आदेश जारी किए हैं। इस पूरे मामले में एक बड़ा सवाल ये उठ रहा है दूसरे की जमीन को बिना दस्तावेजों की जांच पड़ताल किये फर्जी जमीन मालिक के नाम चढ़ाने वालों पर कार्रवाई का शिकंजा क्यों नही कसा जा रहा है।। ये है मामला। गोंची तरोंदा निवासी प्रदीप पुत्र रामदास चौधरी एवं उसके स्वजनों पर फर्जी दस्तावेजों एवं कूटरचना कर दूसरे की जमीन हथियाने का प्रकरण एसडीएम न्यायालय में पेश हुआ था। जांच के बाद न्यायालय ने कार्रवाई के आदेश देते हुए संबधित जमीन उसके असली भूस्वामियों के नाम करने का आदेश भी दिया है। बृजपाल पुत्र कैलाश सिंह ठाकुर ने न्यायालय में परिवाद दायर करते हुए अनावेदक प्रदीप पुत्र रामदास चौधरी पर जमीन के दस्तावेजों में हेराफेरी कर अपने पिता के नाम कराने एवं बाद में इसका भाईयों में बंटवारा कर रेलवे से मुआवजे के रूप में बड़ी राशि हासिल करने की शिकायत की थी। यह है जमीन से जुड़ी हकीकत। तहसील इटारसी के ग्राम जुझारपुर में खसरा नं. 44 रकबा 0.294 हे., खसरा नं. 45 रकबा 1.360 . जुमला रकबा 1.574 हे. साल 1988-89 में अभय, अजीत, दीपक कुमार पुत्र विश्वनाथ एवं राजेश्वर वल्द करूणाशंकर के नाम दर्ज रही है। इस भूमि पर साल 1998-99 में प्रदीप चौधरी ने मौरूसी किसान बनकर पहले अपने पिता रामदास वल्द झींगा के नाम दर्ज कराई, इसके बाद बंटवारे के रूप में यह जमीन तथाकथित रूप से रामदास, कमलेश वल्द रामदास, गोविंद वल्द रामदास मुकेश वल्द रामदास एवं इसके बाद रामदास, जमनाबाई, प्रदीप वल्द रामदास के नाम कराई गई। इस काम को अंजाम देने के लिए दस्तावेजों से छेडछाड़ की। मुआवजा लेकर रेलवे को दी चपत। विवादित जमीन से जब रेलवे बायपास लाइन निकलने का समय आया, तो प्रदीप एवं उसके परिवार ने अधिग्रहण के बदले मुआवजा दावा पेश कर अलग-अलग नामों से लाखों रुपये का मुआवजा भी रेलवे से प्राप्त कर लिया। प्रदीप ने दावा किया कि उसके पिता रामदास के पिता झींगा वल्द दलपत राजेश्वर एवं विश्वनाथ की जिरात के मुनीम थे। साल 1984-85 में राजेश्वर वल्द करुणाशंकर द्वारा उसके दादा झींगा को सेवा के बदले राजी-खुशी यह जमीन दी गई थी। यह भी दावा किया कि राजेश्वर वल्द करुणाशंकर ने ही यह जमीन न्यायालय में उपस्थित होकर जमीन रामदास के नाम कराई। जांच प्रतिवेदन में सच आया सामने प्रकरण की जांच में एसडीएम द्वारा पटवारी से जांच प्रतिवेदन मांगा गया, इसमें पता चला कि संबधित जमीन पूर्व में विश्वनाथ एवं राजेश्वर पुत्र करुणाशंकर निवासी पथरोटा के नाम दर्ज रही है, बाद में यह जमीन उनके स्वजनों के नाम हुई है, जो अब मुंबई में रहते हैं।धोखाधड़ी एवं कूटरचना कर गलत ढंग से जमीन हथियाने एवं रेलवे से इस जमीन का लाखों रुपये मुआवजा हासिल करने पर प्रदीप चौधरी एवं उसके स्वजनों पर पथरोटा थाने में प्रकरण दर्ज कराने के आदेश दिए हैं, साथ ही इनके द्वारा कराया नामांतरण निरस्त कर वास्तविक भू स्वामियों के नाम दर्ज करने को कहा गया है। इनका कहना है गोंची तरोंदा में दूसरे की जमींन दस्तावेजों में छेड़छाड़ कर अपने और परिजनों के नाम कराने और रेलवे से मुआवजा लेने के मामले में शिकायत सही पाई गई है। मामले में आरोपी प्रदीप चौधरी और अन्य परिजनों पर एफआईआर दर्ज कराने का आदेश जारी किया गया है। एमएस रघुवंशी, एसडीएम इटारसी