नर्मदापुरम। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व ने मां से बिछड़ी छह महीने की एक बाघिन को ठीक उसी तरह परवरिश दी जिस तरह एक मां अपने बच्चे को देती है। एसटीआर के इस लालन पालन के चलते बाघिन जब संभल गई तो उसे जंगल में आजाद करने का निर्णय लिया गया। वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश के बाद गुरुवार को 20 महीने बाद खुले जंगल में बाघिन को आज़ाद छोड़ दिया गया।
ऐसे मिली थी बाघिन
25-08-2022 को लगभग छह महीने की एक मादा बाघ शावक अपनी मां से बिछड़ गई
थी और सिवनी वनमंडल के ग्राम हरदुआ के निकट एक
कुएं में
गिरकर घायल
हो गई थी। जिसे रेस्क्यू कर वन विहार राष्ट्रीय उद्यान भोपाल उपचार हेतु भेजा गया
था। कुछ स्वस्थ होने के उपरांत
बाघिन शावक को सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के चूरना स्थित बाड़े में भेजा गया जहाँ पर सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के वन्यप्राणी चिकित्सक द्वारा दीर्घकालिक उपचार कर उसे पूर्ण रूप से स्वस्थ किया गया। बाड़े में लाये जाने के समय बाघिन शिकार करना नहीं जानती थी। अतः क्षेत्रसंचालक, उपसंचालक तथा अन्य अनुभवी अमले द्वारा विभिन्न तरीकों से मादा बाघ शावक को शिकार करना सिखाया गया। मादा बाघ के पूर्ण रूप से स्वस्थ् व शिकार करने में माहिर हो जाने के
बाद उसे खुले वन
क्षेत्र में मुक्त करने का निर्णय लिया गया।
ट्रेस करने पहनाई रेडियो कॉलर
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के मालनी स्थित बाड़े में लगभग 20 माह गुजारने के बाद इस मादा बाघ को
ट्रेनक्यूलाइज कर रेड़ियो कॉलर लगाई गई
ताकि उसकी निगरानी हो सके। इसके बाद उसे खुले वनक्षेत्र में मुक्त किया गया।
बाघिन को जंगल में छोड़ने के दौरान एल. कृष्णमूर्ति क्षेत्रसंचालक, सतपुडा टाइगर रिजर्व के निर्देशन में डॉ0 गुरूदत्त शर्मा, वन्यप्राणी चिकित्सक, विनोद वर्मा सहायक संचालक, एवं रेस्क्यू दल के अन्य सदस्य पीयूष चावड़ा, बसंत पाण्डे, रामनिवास मेहरा, पर्वत पासी, सुषील डाकरिया, प्रदीप शर्मा तथा वन्यप्राणी संरक्षण ट्रस्ट के डॉ0 प्रशांत देशमुख, वन्यप्राणी चिकित्सक, वीरेन्द्र मेहरा, वाईल्ड लाईफ सेन्टर जबलपुर के डॉ0 ओमकार, डॉ0 रोहन
, रामभरोस पाठक, परिक्षेत्र अधिकारी
एवं चूरना परिक्षेत्र के
अधिकारी रहे। उपसंचालक पूजा नागले ने बताया कि विभिन्न दल गठित कर उक्त मादा बाघ का अनुश्रवण उसके गले में लगे रेडियो कॉलर के माध्यम से निरंतर किया जावेगा।