इटारसी। इटारसी के प्रसिद्ध धार्मिक स्थान तिलक सिंदूर शिव मंदिर में नववर्ष के पहले दिन 15 हजार से ज्यादा श्रद्धालु भगवान शिव का आशीर्वाद लेने पहुंचे। श्रद्धालुओं की भीड़ ने यहां महाशिवरात्रि के दिन बनने वाले माहौल की याद ताजा कर दी। बड़ी संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं को संभालने में मंदिर समिति के सदस्यों को करीब 5 घंटे लग गए। समिति और पुलिस प्रशासन के सहयोग से मंदिर परिसर में पहुंचे श्रद्धालुओं को बिना किसी परेशानी के भगवान शिव के दर्शन हुए।
नववर्ष पर अब हर साल तिलक सिंदूर शिव मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जा रही है। यह स्थान अब जिले ही नहीं जिले के बाहर के लोगों के लिए भी आस्था का केंद्र बनता जा रहा है। तिलक सिंदूर मंदिर के आसपास का प्राकृतिक सौंदर्य लोगों को अब अपनी तरफ तेजी से खींचने लगा है। यही कारण है कि लोग अब बड़े त्योहारों या खास अवसरों पर तिलक सिंदूर मंदिर आना पसंद कर रहे हैं।
क्या है खासियत
आपने भोलेनाथ के कई मंदिरों के बारे में सुना होगा मगर तिलक सिंदूर मंदिर का इतिहास अपने आप में समृद्ध है। इटारसी से 1५ कमी दूर स्थित है तिलक सिंदूर धाम। जो यहां पहुंचने वालों के लिए आस्था का केंद्र है। हर वैसे तो हर दिन सैकड़ों शिवभक्त पहुंचते हैं लेकिन महाशिवरात्रि के अलावा अन्य सभी बड़े त्योहारों या खास अवसरों पर यहां बड़ी संख्या में शिवभक्त पहुंचते हैं। यहां महाशिवरात्रि पर शिवजी की प्रतिमा का सिंदूर से स्नान कराकर श्रृंगार किया जाता है, इसलिए इसे तिलक सिंदूर कहते हैं। पौराणिक कथाओं में भी इसका विशेष महत्व है। बताया जाता है कि यह ओंकारेश्वर महादेव मंदिर का समकालीन शिवलिंग है। यहां शिवलिंग पर स्थित जलहरी का आकार चतुष्कोणीय है, जबकि सामान्य तौर पर जलहरी त्रिकोणात्मक होती है। ओंकारेश्वर महादेव की तरह ही यहां का जल पश्चिम दिशा की ओर प्रवाहित होता है। मंदिर का संबंध गोंड जनजाति से है। यहां आदिवासी पूजा अर्चना के दौरान सिंदूर का उपयोग करते हैं।
भवानी अष्टक में है उल्लेख
यहां बम-बम बाबा ने साधना की थी। नेपाल की बार्डर पर बिहार के रहने वाले कालिकानंद ब्रह्मचारी देवी भक्त थे और वह तांत्रिक साधनाएं करते थे। देवी भक्त बम बम बाबा बताते थे कि भवानी अष्टक में तिलक वन का जो जिक्र है। वह तिलक सिंदूर ही है। इस लिहाज से इसका अपना अलग धार्मिक महत्व है।
आज भी है यहां सुरंग
मान्यता है कि मंदिर के पास की गुफा से एक सुरंग पचमढ़ी के निकट जम्बूद्वीप गुफा तक जाती है। भस्मासुर के स्पर्श से बचने के लिए भगवान शंकर यहां से भागे थे और पचमढ़ी के पास निकले थे। यहां पहुंचने वाले लोग इस गुफा के दर्शन भी करते हैं। तिलकसिंदूर में पहाड़ी पर शिवालय है और सामने हंसगंगा नदी है। हंसगंगा नदी के पार श्मशान है। इस श्मशान में आसपास बसे करीब 15 गांवों के लोग दाह संस्कार करते हैं। शिवालय के आसपास श्मशान होना एक खास महत्व रखता है।